(पाठ्यपुस्तक से)
प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर
गोपियाँ उद्धव को व्यंग्य करती हैं कि तुम्हारे भाग्य की कैसी बिडंबना है कि
श्रीकृष्ण के निकट रहते हुए भी प्रेम से वंचित रहे। श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी
उनके प्रति अनुराग नहीं हुआ, वह तुम जैसा ही भाग्यवान हो सकता है। इस तरह गोपियाँ
उनको भाग्यवान कहकर यही व्यंग्य करती हैं कि तुमसे बढ़कर दुर्भाग्य और किसका हो
सकता
प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किससे की गई है?
उत्तर
उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित से की गई है
- कमल के पत्तों से, जो जल में रहकर भी उससे प्रभावित नहीं होते।
- जल में पड़ी तेल की बूंद से, जो जल में घुलती-मिलती नहीं। उद्धव भी इनके समान हैं। वे कृष्ण के संग रहकर भी उसके प्रेम से प्रभावित नहीं हो सके।
प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर
गोपियाँ उद्धव को निम्नलिखित उलाहने देकर उनको आहत करती हैं
- हम गोपियाँ तुम्हारी तरह उस कमल-पत्र और तेल की मटकी नहीं हैं जो श्रीकृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम से अछूती रह सकें।
- हम तुम्हारी तरह निष्ठुर नहीं हैं जो समीप बहती हुई प्रेम-नदी का स्पर्श तक भी न करें।
- तुम्हारे योग-संदेश हम गोपियों के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
- हमने कृष्ण को मन, वचन और कर्म से हारिल की लकड़ी की तरह जकड़ रखा है।
- हमें योग-संदेश कड़वी ककड़ी तथा व्याधि के समान प्रतीत हो रहा है।
प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे
किया?
उत्तर
ब्रज की गोपियाँ इस प्रतीक्षा में बैठी थीं कि देर-सवेर कृष्ण उनसे मिलने अवश्य
आएँगे, या अपना प्रेम-संदेश भेजेंगे। इसी से वे तृप्त हो जाएँगी। इसी आशा के बल
पर वे वियोग की वेदना सह रही थीं। परंतु ज्यों ही उनके पास कृष्ण द्वारा भेजा गया
योग-संदेश पहुँचा, वे तड़प उठीं। उनकी विरह-ज्वाला तीव्रता से भड़क उठी। उन्हें
लगा कि अब कृष्ण उनके पास नहीं आएँगे। वे योग-संदेश में ही भटकाकर उनसे अपना पीछा
छुड़ा लेंगे। इस भय से उनकी विरहाग्नि भड़क उठी।
प्रश्न 5.
“मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर
गोपियाँ कह रही थीं कि श्रीकृष्ण के प्रति उनका प्रेम था और उन्हें पूर्ण विश्वास
था। | कि उनके प्रेम की मर्यादा का निर्वाह श्रीकृष्ण की ओर से भी वैसा ही होगा
जैसा उनका है। इसके विपरीत कृष्ण ने योग-संदेश भेजकर स्पष्ट कर दिया कि उन्होंने
प्रेम की मर्यादा को नहीं रखा। जिसके लिए गोपियों ने अपनी सभी मर्यादाओं को छोड़
दिया, उसी ने प्रेम-मर्यादा का पालन नहीं किया।
प्रश्न 6.
कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर
गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्ये प्रेम को निम्नलिखित युक्तियों से व्यक्त
किया है
- वे स्वयं को कृष्ण रूपी गुड़ पर लिपटी हुई चींटी कहती हैं।
- वे स्वयं को हारिल पक्षी के समान कहती हैं जिसने कृष्ण-प्रेम रूपी लकड़ी को दृढ़ता से थामा हुआ है।
- वे मन, वचन और कर्म से कृष्ण को मन में धारण किए हुए हैं।
- वे जागते-सोते, दिन-रात और यहाँ तक कि सपने में भी कृष्ण का नाम रटती रहती हैं।
- वे कृष्ण से दूर ले जाने वाले योग-संदेश को सुनते ही व्यथित हो उठती हैं।
प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर
गोपियों ने योग-शिक्षा के बारे में परामर्श देते हुए कहा कि ऐसी शिक्षा उन लोगों
को देना उचित है, जिनका मन चकरी के समान अस्थिर है, चित्त में चंचलता है और जिनका
कृष्ण के प्रति स्नेह-बंधन अटूट नहीं है।
प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों को योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर
सूरदास के पठित पदों के आधार पर स्पष्ट है कि गोपियाँ योग-साधना को नीरस, व्यर्थ
और अवांछित मानती हैं। उनके अनुसार योग-साधना प्रेम का स्थान नहीं ले सकती।
प्रेमीजन योग-मार्ग द्वारा नहीं, प्रेमपूर्ण समर्पण के बल पर ही ईश्वर को पा सकते
हैं। उनके अनुसार, योग-साधना तो उनके प्रेम की दीवानगी में बाधा है। यह उन्हें
उनके कृष्ण से दूर ले जाती है। इसीलिए योग का नाम सुनते ही उनकी विरह-ज्वाला और
अधिक भड़क उठती है। उन्हें योग-साधना एकै बला प्रतीत होती है। उन्हीं के शब्दों
में सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
गोपियाँ प्रेम के बदले योग-संदेश भेजने को कृष्ण की मूर्खता या चालाकी मानती हैं। कभी वे कृष्ण को बुद्ध बनाती हुई कहती हैं-‘बढी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए। कभी वे आरोप लगाती हुई कहती हैं-‘हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर
गोपियाँ अपनी राजनैतिक प्रबुद्धता का परिचय देती हुईं राजा का धर्म बताती हैं कि
राजा का कर्तव्य है कि वह किसी भी स्थिति में अपनी प्रजा को संत्रस्त न करे,
अपितु उसे अन्याय से मुक्ति दिलाए तथा उसकी भलाई के लिए सोचे।
प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस
पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर
गोपियों को लगा कि कृष्ण मथुरा में जाकर बदल गए हैं। वे अब गोपियों से प्रेम नहीं
करते। इसलिए वे स्वयं उनसे मिलने नहीं आए। दूसरे, उन्हें लगा कि अब कृष्ण राजा
बनकर राजनीतिक चालें चलने लगे हैं। छल-कपट उनके स्वभाव का अंग हो गया है। इसलिए
वे वहाँ से अपना प्रेम-संदेश भेजने की बजाय योग-संदेश भेज रहे हैं।
इन परिवर्तनों को देखते हुए गोपियों को लगा कि अब उनका कृष्ण-प्रेम में डूबा हुआ
मन वापस उन्हें मिल पाएगा।
प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके
वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
उद्धवे जैसे ज्ञानी को गोपियों की वाकूपटुता चुप रहने के लिए विवश कर देती है। और
वे गोपियों के वाक्चातुर्य से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। उनके वाक्चातुर्य की
विशेषताएँ निम्नलिखित हैंस्पष्टता-गोपियाँ अपनी बात को बिना किसी लाग-लपेट के
स्पष्ट कह देती हैं। उद्धव के द्वारा बताए गए योग संदेश को बिना संकोच के कड़वी
ककड़ी बता देती हैं। व्यंग्यात्मकता-गोपियाँ व्यंग्य करने में प्रवीण हैं। उनकी
भाग्यहीनता को भाग्यवान कहकर व्यंग्य करती हैं कि तुमसे बढ़कर और कौन भाग्यवान
होगा जो कृष्ण के समीप रहकर उनके अनुराग से वंचित रहे। सहृदयता-उनकी सहृदयता उनकी
बातों में स्पष्ट झलकती है। वे कितनी भावुक हैं इसका ज्ञान तब होता जब वे गद्गद
होकर कहती हैं कि हम अपनी प्रेम-भावना को उनके सामने प्रकट ही नहीं कर पाईं। इस
तरह उनका वाक्चातुर्य अनुपम था।
प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?
उत्तर
सूरदास के भ्रमरगीत की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- इनमें गोपियों का निर्मल कृष्ण-प्रेम प्रकट हुआ है। वे कृष्ण की दीवानी हैं। उनका प्रेम अनन्य है, संपूर्ण है। और अनूठा है।
- गोपियाँ गाँव की चंचल, अल्हड और वाचतुर बालाएँ हैं। वे चुपचाप आँसू बहाने वाली नहीं अपितु अपने भोले-निश्छल तर्को से सामने वाले को परास्त करने की क्षमता रखती हैं।
- भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, उलाहना, निराशा, प्रार्थना, गुहार आदि अनेक-अनेक मनोभाव तीखे तेवरों के साथ प्रकट हुए हैं।
- इसमें योग और प्रेम मार्ग का द्वंद्व दिखाया गया है। प्रेम के सम्मुख योग-साधना को तुच्छ दिखलाया गया है।
- इसमें कृष्ण के ज्ञानी मित्र उद्धव को निरुत्तर, मौन और भौंचक्का-सा दिखाया गया है।
- ये पद संगीत की दृष्टि से बहुत मनोहारी हैं। हर पद पहले गाया गया है, फिर लिखा गया है। ये शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं।
- इनमें ब्रजभाषा की कोमलता, मधुरता और सरसता के दर्शन होते हैं। श्रृंगार रस के अनुरूप शब्द कोमल बनपड़े हैं।
- इनकी भाषा अलंकार-युक्त है। जो भी अलंकार आए हैं, वे सहज जनजीवन से आए हैं। उनका प्रयोग स्वाभाविक है। कहीं-कहीं अलंकार न के बराबर हैं तो भी सरसता में कोई कमी नहीं आई है। ऐसे अलंकारहीन पदों में सूरदास की रसमयी भावना ही आकर्षण का कारण है।
- इन पदों में कृष्ण परदे के पीछे रहते हैं। गोपियाँ ऊधौ के सामने खुलकर अपना उलाहना प्रकट करती हैं।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क
दीजिए।
उत्तर
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं पर वे कुछ और तर्क शामिल कर
सकती थीं जो निम्नलिखित हैं
- जब हम गोपियों ने कृष्ण से प्रेम किया तब क्या कृष्ण ने तुमसे पूछा था। उस समय उन्होंने तुम्हारी मदद नहीं ली। यदि तब मदद ली होती तो योग हमें इतना बुरा न लगता।
- लगता है कि योग तुम्हें बहुत प्रिय है। तुम्हारे साथ के कारण अब कृष्ण भी हमारे प्रेम से अधिक योग को महत्त्व देने लगे हैं।
प्रश्न 14.
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पाऐसी कौन-सी शक्ति थी जो
उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर
गोपियाँ वाक्चतुर हैं। वे बात बनाने में किसी को भी पछाड़ देती हैं। यहाँ तक कि
ज्ञानी उद्धव उनके सामने गैंगे।
होकर खड़े रह जाते हैं। कारण यह है कि गोपियों के हृदय में कृष्ण-प्रेम का सच्चा
ज्वार है। यही उमड़ाव, यही जबरदस्त आवेग उद्धव की बोलती बंद कर देता है। सच्चे
प्रेम में इतनी शक्ति है कि बड़े-से-बड़ा ज्ञानी भी उसके सामने घुटने टेक देता
है।
प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस
कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
“हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं” से यही स्पष्ट होता है कि राजनीति, छल, प्रपंच के
पर्याय के रूप में जानी जाती रही है। राजनीति में धर्म, कर्तव्य, विश्वास,
अपनत्व, सुविचार आदि का कोई महत्त्व और स्थान नहीं है। राजनीति को धर्म का पालन
करने के लिए गोपियों द्वारा याद दिलाने की आवश्यकता पड़ी है, जिस पर कोई ध्यान
नहीं दिया जाता है। आज की कलुषित राजनीति में ऐसा ही चारों ओर दिखाई दे रहा है।
ऐसा प्रतीत होता है कि छल-प्रपंच के बिना राजनीति कैसी? वास्तव में आज की राजनीति
में झूठ और छल-कपट का बोलबाला है। हर हाल में अपना स्वार्थ पूरा करना,
अवसरवादिता, अन्याय, कमजोरों को सताना अधिकाधिक धन कमाना आज की
राजनीति का अंग बन गया है।
पाठेतर सक्रियता
• प्रस्तुत पदों की सबसे बड़ी विशेषता है गोपियों की ‘वाग्विदग्धता’ । आपने ऐसे
और चरित्रों के बारे में पढ़ा या सुना होगा जिन्होंने अपने वाक्चातुर्य के आधार
पर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई ; जैसे-बीरबल, तेनालीराम, गोपालभाँड, मुल्ला
नसीरुद्दीन आदि। अपने किसी मनपसंद चरित्र के कुछ किस्से संकलित कर एक अलबम तैयार
करें।
• सूर रचित अपने प्रिय पदों को लय व ताल के साथ गाएँ।
उत्तर
छात्र स्वयं करें।