(पाठ्यपुस्तक से)
प्रश्न 1.
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
उत्तर
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग इसलिए कैप्टन कहते थे, क्योंकि
- उसके मन में देशभक्ति एवं देश-प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी।
- वह नेताजी के प्रति अपार श्रद्धा रखता था।
- नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति उसे आहत करती थी।
- वह अपने हृदय में देश के लिए त्याग एवं समर्पण की भावना किसी फौजी कैप्टन के समान ही रखता था। यद्यपि उसका व्यक्तित्व किसी सेनानी जैसा तो नहीं था पर उपर्युक्त गुणों के कारण लोग उसे कैप्टन कहते थे।
प्रश्न 2.
हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन
बाद में तुरंत रोकने को कहा-
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
(ग) हालदार साहब किस बात पर भावुक हो उठे?
उत्तर
- हालदार साहब पहले यह सोचकर मायूस हो रहे थे कि कस्बे के चौराहे पर बिना चश्मेवाली सुभाष की मूर्ति होगी। मूर्ति पर चश्मा लगाने वाला कैप्टन मर चुकी है। अब सुभाष की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाला कोई न होगा। अब मूर्ति की आँखों पर चश्मा न होगा।
- मूर्ति पर चश्मा है भले ही सरकंडे का है। इससे पता चलता है कि लोगों में देशभक्तों के प्रति श्रद्धा खत्म नहीं हुई है। हालदार की सोच में सरकंडे का चश्मा किसी बच्चे की सोच का परिणाम है। यह उम्मीद जगाता है कि नई पीढ़ी के बच्चों में भी देशभक्ति एवं देशभक्तों के प्रति आदर एवं श्रद्धा की भावना विद्यमान है।
- हालदार साहब निराश थे कि सुभाष की मूर्ति पर चश्मा नहीं होगा। परंतु मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखकर उनकी निराशा आशा में परिवर्तित हो गई कि बच्चों में भी देशभक्तों के प्रति श्रद्धा विद्यमान है। वे बच्चों में देशभक्ति की भावना देखते हैं। इस बात से वे भावुक हो उठे।
प्रश्न 3.
आशय स्पष्ट कीजिए-
बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम को जो अपने देश की खातिर
घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर हँसती है और अपने लिए बिकने के
मौके ढूँढ़ती है।”
उत्तर
हालदार साहब लोगों में देशभक्ति की घटती हुई भावना से आहत होकर कहते हैं-जिन
लोगों ने देश के लिए अपना संपूर्ण जीवन बलिदान कर दिया है, ऐसे देशभक्तों का लोग
उपहास करते हैं। ऐसे लोगों के लिए स्वार्थ ही महत्त्वपूर्ण है। जिसके लिए संपूर्ण
मर्यादा त्यागने के लिए तत्पर रहते हैं। आज उन लोगों की कमी नहीं है जो उन
देशभक्तों को भी भूल चुके हैं जो अपना घर-परिवार, रिश्तेदार, अपना यौवन यहाँ तक
कि अपना जीवन भी कुर्बान कर चुके हैं।
प्रश्न 4.
पानवाले का रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
पानवाला; जिसकी कस्बे के चौराहे पर पान की दुकान है। उस दुकान पर प्रायः हालदार
साहब पान खाते हैं। पानवाला स्वभाव से खुशमिज़ाज़ है। वह मोटा तथा काला है। उसके
मुँह में पान हुँसा ही रहता है। उसकी भारी-भरकम तोंद है। पान ठुसे रहने से
बत्तीसी लाल-काली है। वह वाक्पटु है तथा व्यंग्यात्मक भाषा बोलता है। कैप्टन के
बारे में पूछने पर उपहास करता हुआ ही नजर आता है। कहता है कि वह लँगड़ा क्या फौज
में जाएगा? वह तो पागल है।
वह सहृदय और भावुक भी है। कैप्टन की मौत हो जाने पर हालदार साहब द्वारा कैप्टन के बारे में पूछने पर पानवाला उदास हो जाता है। उसकी आँखें भर आती हैं।
प्रश्न 5.
“वह लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है पागल !”
कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर
कैप्टन के प्रति पानवाले की टिप्पणी उसके संकीर्ण सोच को प्रकट करती है। कैप्टन
जो सहानुभूति एवं सम्मान का पात्र था उसी का इस तरह उपहास करना उचित नहीं है। वह
अपनी छोटी-सी दुकान से देशभक्त सुभाष की मूर्ति पर चश्मा लगाकर उनके प्रति
श्रद्धा प्रकट करता था।
कैप्टन शारीरिक रूप से अपंग और मरियल होते हुए भी देशभक्ति की भावना रखता था। अतः पानवाले की उक्त टिप्पणी निंदनीय है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर संकेत करते हैं?
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को
निहारते।
(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे
थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला-“साहब! कैप्टन
मर गया।”
(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।
उत्तर
- हालदार साहब के मन में अवश्य ही देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना थी जो सुभाष की मूर्ति को देखकर प्रबल हो उठती थी। देश के लिए सुभाष के किए कार्यों को यादकर उनके प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ती थी। इस कारण हालदार साहब चौराहे पर रुककर नेताजी की मूर्ति को निहारते रहते थे।
- जो पानवाला कभी कैप्टन का उपहास करता था, यहाँ तक कि अधिक देर तक कैप्टन के बारे में बातें करना उसे अच्छा नहीं लगता था वही पानवाला कैप्टन की मौत पर भावुक हो उठा। उसकी आँखें नम हो गईं, गला भर आया। आँखें पोंछते हुए उदास मन से बताया कि कैप्टन मर गया। इस भावना से स्पष्ट है। कि पानवाला जितना खुशमिज़ाज़ था उतना ही सहृदय भी था।
- कैप्टन के हृदय में देश-प्रेम और देशभक्ति की प्रगाढ़ भावना भरी थी। उसमें देशभक्तों के प्रति आस्था थी; उनके प्रति सम्मान था। कैप्टन मूर्तिकार की भूल को चश्मा लगाकर सुधार रहा था। उसे भी बिना चश्मे की सुभाष की मूर्ति अच्छी नहीं लगती थी। अतः कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।
प्रश्न 7.
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक उनके मानस पटल पर
उसका कौन-सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर
हालदार साहब कैप्टन को देखने से पहले समझ रहे होंगे कि कैप्टन प्रभावशाली
व्यक्तित्व का स्वामी होगा जिसमें सुभाष की आजाद-हिंद-फौज के सिपाही जैसी
अनुशासित छवि होगी। शारीरिक रूप से बलिष्ट होगा और उसके प्रति लोगों में विशेष
सम्मान होगा। समाज में अवश्य ही उसकी अलग पहचान होगी जो सबके द्वारा सराहनीय
होगी। इस तरह हालदार साहब के मानस पटल पर ऐसे ही सैनिक व्यक्तित्व की छवि
विराजमान रही होगी।
प्रश्न 8.
कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी-न-किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति
की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है-
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?
(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित
करवाना चाहेंगे |.. और क्यों? … .
(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या
उत्तरदायित्व होने चाहिए?
उत्तर
(क) प्रमुख स्थानों पर विशिष्ट, अनुकरणीय महापुरुष की मूर्ति
लगाने की परंपरा रही है। यह परंपरा स्थान के महत्त्व और सुंदरता तक सीमित नहीं
है, अपितु उसके निश्चित उद्देश्य रहे हैं
- मूर्ति हमें प्रेरणा देती है कि उस महापुरुष के बारे में जानें और उनसे अनुप्रेरित हों।
- उस महान पुरुषं से शिक्षा लें और उस संस्कृति को बनाए रखें।
- उस महापुरुष के द्वारा समाज, संस्कृति और देश के प्रति किए योगदानों की लोगों के मध्ये चर्चा करें। भावी पीढ़ी को जानकारी मिलती रहे और वे गौरवान्वित हों।
(ख) हम अपने इलाके में आचार्य चाणक्य की प्रतिमा लगवाना चाहेंगे जो सर्वथा संपूर्ण राष्ट्रीय-चेतना के आधार थे। उनकी योजनाएँ ऐसी थीं कि प्रकृति भी चाहकर असफल नहीं कर सकी । उनका ऐसा चिंतन था जिससे दूसरे दाँतों तले अँगुली दबाने के लिए विवश थे। साहस के ऐसे धनी थे कि शत्रु समुदाय भी विरोध करने लिए तैयार नहीं होता था। उनके संकल्प की तुलना कोई नहीं कर सकता था। वे अभावों में भी संकल्प को पूरा करने में समर्थ थे। ऐसे आचार्य सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं।
(ग) उस मूर्ति के प्रति हमारा दायित्व यह होगा कि जिसे महापुरुष की मूर्ति है, उस महापुरुष के बारे में यथा समय लोगों को परिचित कराएँ । मूर्ति की स्थापना स्थल परे समय-समय पर विविध प्रकार के आयोजन करते रहें। लोग उस महापुरुष को राष्ट्रीय गौरव के रूप में जानें और उनका सम्मान करें। किसी भी स्थिति में उसका अपमान न होने दें और मूर्ति के सौंदर्य को भी बनाए रखें।
प्रश्न 9.
सीमा पर तैनात फ़ौजी ही देशप्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों
में किसी-न-किसी रूप में देशप्रेम प्रकट करते हैं; जैसे-सार्वजनिक संपत्ति को
नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि। अपने जीवन-जगत् से जुड़े ऐसे और
कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए।
उत्तर
हम सब निम्नलिखित कार्यों द्वारा देशप्रेम प्रकट कर सकते हैं बढ़ते प्रदूषण की
रोकथाम में सहयोग देना, जल स्रोत के आसपास गंदगी ने फैलाना, पूजा-अर्चना,
यज्ञ-हवन आदि के उपरांत जली-अधजली सामग्री एवं राख को नदियों में न फेंकना, शवों
को नदियों में प्रवाहित न करना, सार्वजनिक वस्तुओं का मिल-जुलकर उपयोग करना तथा
उन्हें स्वच्छ रखना, उन्हें तोड़-फोड़ से बचाना, देश की एकता अखंडता पर आँच न आने
देना, समाज एवं देश की प्रगति में योगदान देना, शहीदों तथा स्वाधीनता सेनानियों
के प्रति आदर भाव रखना, लोगों के बीच समरसता फैलाना आदि ।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन |
पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए-
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े, चौखट चाहिए, तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको
मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
उत्तर
मानो कोई ग्राहक आ गया। उसे चौड़ा फ्रेम चाहिए तो कैप्टन कहाँ से लाएगा? तो उसे
मूर्तिवाला फ्रेम दे देता है और मूर्ति पर दूसरा फ्रेम लगा देता है।
प्रश्न 11.
“भई खूब! क्या आइडिया है।” इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में
दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर
जब दूसरी भाषाओं के प्रचलित शब्द अपनी भाषा में यथास्थान सहज रूप से आ जाते हैं
तो भाषा दुरूहता से बच जाती हैं। भाव को समझने में सहजता होती है। दूसरी भाषाओं
के सहज प्रयोग से भाषा में लचीलापन आ जाता है। इस प्रकार दूसरे शब्द भी भाषा में
ऐसे समा जाते हैं कि उसी भाषा के प्रतीत होने लगते हैं।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए
(क) नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया
होगा। ।
(ग) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से
गुज़रते रहे।
उत्तर
(क) तो, भी
- मंत्री महोदय तो आज भी आ रहे हैं।
- महात्मा तो चले गए।
- राम के साथ लक्ष्मण भी बन गए।
(ख) ही
- उन्हें भी आज ही आना है।
- भरत के पास सीता ही जाएँगी।
(ग) तो
- यह तो राम जैसे ही प्रतीत हो रहे हैं।
- आज तो गुरु-पूर्णिमा है।
(घ) भी
- लक्ष्मण भी यही कह रहे थे।
- मुनि अभी भी नहीं समझ रहे हैं।
(ङ) तक
- कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है।
- यहाँ से नदी के किनारे तक जंगल-ही-जंगल है।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से
एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ़ बता दिया था।
(घ) ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया।
उत्तर
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने
फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले दुवारा नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर दुवारा जोर से ब्रेक मारे गए।
(ङ) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया
गया।
प्रश्न 14.
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिएजैसे-अब चलते हैं। अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
उत्तर
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।।
(ख) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न 1.
लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय
कलाकार को दिया गया
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे
होंगे?
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे
कलाकारों के काम को कैसे महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं, लिखें।
उत्तर
- कलाकार की सोच रही होगी कि वह पूरी तन्मयता और मेहनत से मूर्ति को बनाएगी ताकि सभी लोग उसकी सराहना करें। इस मूर्ति के निर्माण से उसे प्रसिद्धि मिलेगी। इस तरह मूर्तिकार के रूप में यश मिलेगा। ऐसी कल्पनाएँ उसके मन में उठ रही होंगी।
- हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों को अपने आयोजनों में बुलाकर, उन्हें अवसर देकर, उनकी सराहना कर, उन्हें उचित पारिश्रमिक देकर उनके मनोबल को बढ़ा सकते हैं।
प्रश्न 2.
आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी हैं। उनके लिए विद्यालय
परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएँ, प्रशासन को इस संदर्भ
में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए।
उत्तर
सेवा में,
शिक्षा निदेशक महोदय
शिक्षा निदेशालय
पुराना सचिवालय, दिल्ली।
विषय-विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौती-पूर्ण विद्यार्थियों
के लिए सुव्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र ।
महोदय,
निवेदन है कि भाग्य की विडंबना से ऐसे कई छात्र विद्यालय में पढ़ते हैं जिनकी
इच्छाशक्ति तो प्रबल है किंतु वे शारीरिक रूप से विपन्न हैं। शारीरिक विपन्नता की
चिंता किए बिना वे इतने साहसी हैं कि केवल विद्यालय में आते ही नहीं हैं अपितु
विद्यालय की प्रत्येक स्पर्धा में भाग भी लेते हैं।
अतः उनके प्रति सहानुभूति रखते हुए ऐसे छात्रों की कक्षाएँ भूतल पर स्थानांतरित
करने की आवश्यकता है, जिससे वे व्हील-चेयर के माध्यम से विद्यालय-कक्ष में सरलता
से प्रवेश कर सकें। साथ ही समुचित मार्ग निर्माण की भी जरूरत है। उनके लिए उनके
ही अनुरूप शौचालय की भी आवश्यकता है।
मैं पूर्ण आशान्वित हूँ कि इस विषय पर आप गंभीरता से विचार करेंगे।
सधन्यवाद
भवदीय
शशांक शर्मा
कक्षा 10
राजकीय सर्वोदय विद्यालय
आनंद विहार, नई दिल्ली–110092
7 जुलाई 20 …
प्रश्न 3.
कैप्टन फेरी लगाता था। फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी ज़रूरतों को –
आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार
कीजिए। तैयार कीजिए।
उत्तर
फेरीवालों को समाज में सम्मान प्राप्त नहीं है। फेरीवाले फेरी लगाने में विशेष
रुचि भी नहीं रखते हैं। वे भी एक स्थायी व्यवसाय के लिए एक स्थिर स्थान, दुकान की
कल्पना करते हैं। धन के अभाव में फेरी लगाना उनकी विवशता है। फेरीवाले अपने सामान
को साइकिलों पर, या कंधों पर लादे हुए सामान बेचने की इच्छा से नए-नए स्थान
तलाशते रहते हैं, जिससे उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। आज यहाँ
आए हैं, कल कहाँ जाएँगे, कुछ पता नहीं होता है। स्थान निश्चित न होने के कारण
लोगों का इन पर विश्वास भी नहीं होता है। इससे फेरीवाले अपने सामान के बिकने के
प्रति संदिग्ध रहते हैं। ये फेरीवाले गाँवों के दूर-दराज क्षेत्रों में लोगों की
आवश्यक वस्तुओं को उन तक पहुँचाते हैं फिर भी लोग उन्हें विशेष सम्मान नहीं देते
हैं |
प्रश्न 4.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन तथा स्वाधीनता प्राप्त करने के लिए किए गए उनके
प्रयासों से संबंधित कुछ तथ्य नीचे दिए हैं। विद्यार्थी इनकी मदद से प्रोजेक्ट
तैयार करें।
नाम-सुभाषचंद्र बोस
उपनाम-नेताजी
जन्म-23 जनवरी, 1897 को कटक (उड़ीसा) में।
पिता का नाम-श्री जानकीदास, एक प्रसिद्ध वकील ।
शिक्षा-
- बचपन से ही मेधावी तथा प्रथम श्रेणी में एंट्रेस परीक्षा उत्तीर्ण ।
- कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश किंतु अंग्रेज़ प्राध्यापक द्वारा भारतीय विद्यार्थियों के साथ दुर्व्यवहार करने पर विरोध करने के कारण कॉलेज से निष्कासित।। निष्कासित ।
- कलकत्ता विश्वविद्यालय से अच्छे अंकों के साथ बी.ए. उत्तीर्ण, बाद में आई. सी.एस. में चयनित।
- आई.सी.एस. से त्यागपत्र तथा भारत आगमन। स्वाधीनता-प्राप्ति हेतु किए गए प्रयास
- प्रिंस आफ बेल्स के भारत आगमन का विरोध कुरुते हुए गिरफ़्तार ।
- स्वराज दल की स्थापना तथा 1918 में निगम के कार्यपालक अधिकारी।
- ‘बांगलार कथा’ पत्र के संपादक तथा फचडे फॉरवर्ड पत्र के पबंधक।
- 1938 तथा 1989 में कांग्रेस अध्यक्ष निवाचित!
- गाँधी जी से मतभेद होने के कारण अलग ‘फॉरवर्ड ब्लाक’ की स्थापना ।
- दृवितीय विश्वयुद्ध के समय आमरण अनशन, नजरबंद तथा 1941 में गुप्त रूप से विदेश गए।
- हिटलर से मुलाकात के बाद आज़ाद हिंद फौज़ का गठन। ‘नेताजी’ के रूप में प्रसिद्ध तथा ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया।
- सिंगापुर में आज़ाद हिंद सरकार की स्थापना, ‘जयहिंद’ तथा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ का नारा दिया।
- 18 अगस्त, 1945 को विमान-दुर्घटना में रहस्यमयी मौत।
प्रश्न 5.
अपने घर के आसपास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम | करवाए हैं?
हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है?
उत्तर
हमारे आसपास नगरपालिका ने निम्नलिखित कार्य करवाए हैं
- नगरपालिका ने कई कच्ची सड़कों को पक्का कराया है।
- स्वच्छ पेयजल को घर-घरे तक पहुँचाने का कार्य किया है।
- पार्क के लिए छूटे भूखंड पर पार्क विकसित किया है तथा पुराने पार्को का जीर्णोद्धार किया है।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक केंद्र तथा बारातघरों का निर्माण कराया है।
इन कार्यों में हमारी निम्नलिखित भूमिका हो सकती है|
- हम पार्क या अन्य सार्वजनिक संपत्ति को क्षतिग्रस्त न करें। पानी का दुरुपयोग न करें।
- कूड़ा कूड़ेदान में ही फेंके। इधर-उधर फेंककर गंदगी न फैलाएँ।
- नगरपालिका कर्मचारियों को यथासंभव उनके काम में सहयोग दें।
• नीचे दिए गए निबंध का अंश पढ़िए और समझिए कि गद्य की विविध विधाओं में एक ही
भाव को अलग-अलग प्रकार से कैसे व्यक्त किया जा सकता है-
उत्तर
देश-प्रेम
देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अथान
मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार
का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों मे
देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का माथ रहता
है, सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लाभ
या राग हो सकता है। देशप्रेम यदि वास्तव में अंतःकरण का का भाव है तो वही हो सकता
है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवास या क्रिमी और भाव के संक्रत के लिए गढ़ा हुआ
शब्द है।
यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी,
लता, गुल्म, पेड़, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा, वह सबको चाहभरी
दृष्टि से देखेगा; वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा। जो यह भी नहीं जानते
कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है,
जो यह भी आँख भर नहीं देखते कि आम प्रणय-सौरंभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए
हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे
यदि बस बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर
देशप्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप परिचय का यह प्रेम
कैसा? जिनके दुख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो,
यह कैसे समझें? उनसे कोसों दूर बैठे-बैठे, पड़े-पड़े या खड़े-खड़े तुम विलायती
बोली में ‘अर्थशास्त्र’ की दुहाई दिया करो, पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो।
प्रेम हिसाब-किताब नहीं है।
हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर भी मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।
हिसाब-किताबे से देश की दशा का ज्ञान-मात्र हो सकता है। हित-चिंतन और हित-साधन की
प्रवृत्ति कोरे ज्ञान से भिन्न है। वह मन के वेग या भाव पर अवलंबित है, उसका
संबंध लोभ या प्रेम से है, जिसके बिना अन्य पक्ष में आवश्यक त्याग को उत्साह हो
नहीं सकता।