प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भाव से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए
तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर
नवाब साहब लेखक को सेकंड क्लास के डिब्बे में आया हुआ देखकर उनमें असंतोष का भाव
छा गया। उन्हें एकांतवास में बाधा का अनुभव होने लगा वे अनमने होकर
खिड़की से बाहर झाँकते रहे और लेखक को न देखने का नाटकीय प्रदर्शन करते रहे। नवाब साहब के इन हाव-भावों को देखकर लेखक अनुमान लगा रहा था कि वे बातचीत करने के लिए किंचित भी उत्सुक नहीं हैं।
प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सँघकर ही खिड़की
से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे
स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर
नवाब साहब अपनी नवाबी शान-शौकत को दिखाने की आदत रखते थे। वह अपनी हरकत से
ठाट-बाट का प्रदर्शन करने में लगे थे। लेखक को देखकर अपनी प्रवृत्ति के अनुसार
खीरों को छीला, नमक-मिर्च लगाया, सँघा और बाहर फेंक दिया। जैसे यह सब करके नवाब
साहब बता देना चाहते हों कि उनके द्वारा इन्हें पूँघना ही पर्याप्त है। खीरे खाकर
पेट भरने की आदत तो साधारण लोगों की बात है। इस प्रकार यह सब नवाब साहब के अमीरी
दिखावे के स्वभाव की ओर संकेत करता है।
प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों की भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस
विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर
कहानी किसी घटना का ऐसा वर्णन है जो किसी विशेष कारण की ओर संकेत करती है। घटना
कैसे घटी, उसके क्या कारण थे, उसका क्या परिणाम हुआ? यह सब जानने की जिज्ञासा मन
में बनी रहती है और घटना बिना कारण के नहीं होती है। अतः बिना पात्र के कहानी तथा
बिना कारण के घटना कैसे संभव है? घटना के बिना विचार कैसे? अतः लेखक का मानना है
कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी नहीं लिखी जा सकती है। यह पूर्णतः सत्य
है। उनका विचार हमारे विचारों के अनुकूल है।
प्रश्न 4.
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर
नवाबी दिखावा या नवाबी ठाट, थोथा चना, असार्थक प्रदर्शन आदि-आदि शीर्षक हो सकते
हैं जो पाठ के निहित अर्थ को समेटे हुए हैं।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र
प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की
तैयारी करते
उत्तर
(क) नवाब साहेब सामने बैठे लेखक को देखकर अपने संकोच को दूर
करते हुए कुछ नए अंदाज में खीरा काटने की प्रक्रिया अपनाते हैं-
- बर्थ के नीचे रखे पानी से भरे लोटे को लेकर खिड़की से बाहर खीरों को अच्छी | तरह धोते हैं और तौलिए से पोंछते हैं।
- जेब से चाकू निकालकर खीरे के सिर को काटकर और गोदकर झाग निकालते
- खीरों को सावधानी से छीलते हैं, फाँके बनाते हैं और बिछी तौलिए पर करीने से सजाकर देखते रहते हैं।
- कटी हुई फाँकों पर जीरा मिले नमक को और काली मिर्च को बुरकते हैं।
- खीरा सामने देखकर खीरे का रसास्वादन मन-ही-मन करने लगते हैं और मुँह में पानी भर आता है।
(ख) भोजन करने के लिए यथासंभव नीबू, विविध फलों, सब्ज़ियाँ का
सलाद, उस पर नींबू को निचोड़ रस डालकर काला नमक आदि डालते हैं। नमकीन रायता और
चटनी को अलग-अलग कटोरी में रखते हैं। उसके भोजन का स्वाद लेते हैं।
प्रश्न 6.
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों
की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा । किसी एक के बारे में
लिखिए।
उत्तर
नवाब साहब के द्वारा खीरा पानी से धोना, छीलना, फाँके करना, साफ-सुथरी तौलिया को
झाड़कर और बिछाकर तौलिए पर फॉकों को करीने से रखना, नमक-मिर्च बुरकना फिर बिना
खाए ही सँघकर फेंक देना एक तरह की सनक ही है। किसी सनक के बारे में विद्यार्थी
स्वयं लिखें।
प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख
कीजिए?
उत्तर
सनक सवार हो जाना अर्थात् जनून छा जाना अर्थात् धुन का पक्का होना। जो धुन के
पक्के होते हैं, ऐसे लोग जिस पथ पर चल पड़ते हैं तो तब तक चलते रहते हैं। जब तक
लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती है। ऐसी सापेक्ष सनक सकारात्मक होती है। परिणाम
अच्छे निकलते हैं।
आचार्य चाणक्य ऐसे ही सनकी महापुरुष थे। पक्का इरादा, आत्मविश्वास और चढ़ गई सनक कि राजा नंद को समूल नाश कर योग्य शासक के हाथ में शासन को सौंपना है। सनक के सामने संकटों से भरा मार्ग भी प्रशस्त जान पड़ता है। बड़ी-बड़ी विपदाओं की चिंता किए बिना एक सामान्य बालक को ही सम्राट बनाने की ठान ली और वही हुआ, होकर रहा जो भी चाणक्य चाहते थे। अतः सापेक्ष सनक के सुपरिणाम ही निकलते हैं।