प्रश्न 1.
आपके विचार में माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर चड़की जैसी मत दिखाई
देना?
उत्तर
माँ को अपने जीवन को अनुभव था। अपने अनुभव के अनुसार माँ अपनी बेटी को विवाहित
जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रति सचेत कर रही थी। ‘‘लड़की होना पर लड़की
जैसी दिखाई मत देना” यह माँ ने इसलिए कहा जिससे उसकी बेटी विपरीत परिस्थितियों का
सामना कर सके और अत्याचार का शिकार न होने पाए।
प्रश्न 2.
आगे रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर
संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर
(क) इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने स्त्रियों को कमजोर बनाकर
मात्र सजावट की वस्तु बनाने के सामाजिक नियमों का विरोध किया है। उसका मानना है
कि रूप-सौंदर्य, वस्त्र, आभूषण आदि स्त्री-जीवन को बंधन में डालने के कारण बनते
हैं। अतः स्त्री-जाति को इससे सतर्क रहना चाहिए और अपने आपको विपरीत परिस्थितियों
में भी डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रखना चाहिए।
(ख) माँ को समाज का अनुभव है, इसलिए माँ अनेक आशंकाओं से चिंतित है कि जो उसने देखा है, झेला है, ऐसी परिस्थितियाँ बेटी के लिए भी आएँगी। माँ यह भी जानती है कि मेरी बेटी अभी सरल हृदया है। सामाजिक कठिनाइयों का उसे किंचित अनुभव नहीं है। अभी तक तो माँ के सान्निध्य में रह-रही स्नेह की छाया से वंचित नहीं हुई थी। इसलिए वह सभी परिस्थितियों के प्रति उसे सचेत करना चाहती थी।
प्रश्न 3.
“पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की ।
कुछ तुकों कुछ लयबद्ध पंक्तियों की ।”
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध
कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियों से लड़की की वह छवि हमारे सामने उपस्थित होती है जिसमें
अल्पवयस्क लड़की परिवार, माँ के सान्निध्य में पोषित बचपन जैसी कल्पनाओं को संजोए
हुए थी। उसने अभी सुखों को भोगा था पर अभी दुखों से पूर्णतः अनजान थी। वह अभी
व्यावहारिक ज्ञान से अपरिचित थी।
प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर
माँ के लिए बेटी उस संचित पूँजी की तरह होती है, जिसे कोई मनुष्य आपत्तिकाल में
काम आने के लिए बचा कर रखता है। माँ के लिए बेटी सुख-दुख की साथी होती है, वह
उससे अपने मन की बात प्रकट करती है। माँ अपनी अंतिम पूँजी का कन्यादान तो करती है
किंतु उसके जीवन में रिक्तता आ जाती है। यही कारण है माँ अपनी बेटी को अंतिम
पूँजी समझती है।
प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर
माँ अपना दायित्व समझकर बेटी को निम्नलिखित सीख देती है
- पानी में झाँककर अपने सौंदर्य से अभिभूत मत होना।
- वस्त्रों और आभूषणों को बंधन मत बनने देना।
- आभूषण बंधनों में बाँधने के लिए नहीं होते हैं, अपितु सौंदर्य में वृधि करने के लिए होते हैं।
- मर्यादाओं का पालन करने वाली लड़की बनकर तो रहना किंतु बेचारी, भोली-भाली दिखने वाली, असहाय बनकर मत रहना।।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर
‘कन्यादान’ शब्द में अर्थ दोष है। ‘कन्या का दान’ इस अर्थ में कि कन्यादान-ऐसी
अनिवार्य परंपरा, जिसे करना ही है के अंतर्गत कन्या को ऐसी वस्तु समझना कि यह
त्याज्य है। यह भाव निंदनीय है। इस भाव में कन्या एक वस्तु है और ऐसी वस्तु जो
अतिरिक्त है, उसे ‘दान’ के नाम पर किसी को दे देना पुण्य है। यह भाव सर्वथा
दोषपूर्ण है।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न 1.
स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है। इस विषय
पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर
स्त्री-सौंदर्य की प्रतिमूर्ति है-यह प्रतिमान स्त्री को उसी तरह दिग्भ्रमित करता
है जिस प्रकार एक निरीह अध्यापक को राष्ट्र-निर्माता का बिल्ला लगाकर उसे मात्र
शब्दों में सम्मानित तो किया जाता है, किंतु सर्वत्र लोगों द्वारा उसकी छीछालेदर
होती है। इस विषय पर छात्र स्वयं चर्चा करें।
प्रश्न 2.
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं।
क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
उत्तर
मैं लौटूगी नहीं
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटॅगी नहीं।
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं।
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं।
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटॅगी नहीं।